रेवाड़ी : पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए जयपुर की दो नाबालिग बहनें 7 वर्षीय नाभ्या और 13 वर्षीय सीबा साइकिल से दिल्ली की ओर निकल पड़ी हैं। रोज़ाना 25 किलोमीटर पैडल मारते हुए ये दोनों बहनें 21 अगस्त को दिल्ली पहुंचेंगी, जहाँ वे प्रधानमंत्री से मिलकर यह सवाल पूछना चाहती हैं “जब मां के नाम पर एक पेड़ लगाने की अपील की जाती है, तो फिर प्राकृतिक जंगल क्यों काटे जा रहे हैं?”
रविवार को यह बहनें राष्ट्रीय राजमार्ग-48 पर कसौला चौक स्थित एक रेस्टोरेंट में पहुँचीं, जहाँ स्थानीय लोगों ने उनका उत्साह बढ़ाया और उनकी मुहिम “सेव डोल का बाढ़” से जुड़ने का संकल्प लिया।
संकट में है जयपुर का ‘डोल का बाढ़’ जंगल
जयपुर का डोल का बाढ़ प्राकृतिक जंगल लगभग 100 एकड़ में फैला हुआ है। यहाँ करीब 2500 पेड़ और 85 प्रजातियों के पक्षियों का घर है। लेकिन रीको (RIICO) की विकास योजनाओं जिनमें यूनिटी मॉल, राजस्थान मंडपम, फिनटेक बिल्डिंग्स और लिविंग स्पेस शामिल हैं – के चलते यह जंगल उजड़ने की कगार पर है। अब तक लगभग 200 पेड़ काटे जा चुके हैं और आगे 2300 और पेड़ों की बलि चढ़ने की आशंका है।
बहनों का सुझाव
नाभ्या और सीबा का कहना है कि इस क्षेत्र को काटने की बजाय सरकार को इसे बायोडायवर्सिटी पार्क के रूप में विकसित करना चाहिए। साथ ही यहाँ क्लाइमेट एजुकेशन म्यूजियम, बर्ड वॉचिंग टावर और ईको-टूरिज़्म ज़ोन बनाए जा सकते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से जंगल भी बचेगा और जयपुर की पहचान भी कायम रहेगी।
पर्यावरण पर असर
विशेषज्ञों का आकलन है कि एक पेड़ हर साल औसतन 21 किलो कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर 100 किलो ऑक्सीजन देता है। 2500 पेड़ों के कटने से सालाना लगभग 240 टन ऑक्सीजन उत्पादन प्रभावित होगा। तापमान में 2 से 6 डिग्री तक वृद्धि हो सकती है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यह जंगल जैव-विविधता का खजाना है और इसे नष्ट करना भविष्य की पीढ़ियों से ऑक्सीजन छीनने जैसा है।