हरियाणा में ड्यूटी के दौरान केवल दो घंटे सो जाने पर 15 साल सेवा दे चुके एक कांस्टेबल को बर्खास्त कर दिया गया। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस सजा को अत्यधिक असंगत बताते हुए इसे नागरिक मृत्यु के समान माना है। जस्टिस संदीप मौदगिल ने सीआरपीएफ कांस्टेबल की बर्खास्तगी का आदेश रद्द करते हुए कहा कि अनुशासन सुरक्षा बलों की रीढ़ है, लेकिन इसका मतलब अत्यधिक कठोरता नहीं होता। कानून यह सुनिश्चित करता है कि सजा न केवल अपराध के अनुरूप हो, बल्कि आरोपी की परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाए।
कोर्ट के समक्ष यह तथ्य प्रस्तुत हुआ कि कांस्टेबल उस समय मानसिक दबाव में था क्योंकि उसकी मां गंभीर रूप से बीमार थी, जिसे मेडिकल रिकॉर्ड से भी प्रमाणित किया गया। कोर्ट ने पाया कि वह न तो स्टेशन से अनुपस्थित था और न ही स्टेशन असुरक्षित छोड़ा गया था। नशे में होने का कोई भी आरोप भी साबित नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि लगभग 15 वर्षों की सेवा, बहादुरी के लिए प्राप्त सम्मान और अनुभव वाले कांस्टेबल को एक गलती के कारण बर्खास्त करना उसकी आजीविका और करियर खत्म करना है। यह सजा अपराध की तुलना में अत्यधिक कठोर है।
कोर्ट ने बताया कि कांस्टेबल पर सीआरपीएफ अधिनियम, 1949 की धारा 11(1) के तहत कार्रवाई हुई थी, जो केवल लघु अपराधों के लिए होती है और इसमें फटकार या लघु सजा का प्रावधान है। अधिकारियों द्वारा एक ही घटना को दो अलग-अलग आरोप ड्यूटी से अनुपस्थिति और आदेश की अवहेलना के रूप में दर्ज करना गलत था।
याचिकाकर्ता को पहले भी कुछ दंड मिल चुके हैं, जो वह भुगत चुका है, इसलिए उन्हें पुनः दंडित करना अन्यायपूर्ण है। साथ ही, कांस्टेबल के बहादुरी के रिकॉर्ड को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। मां की गंभीर बीमारी और अन्य परिस्थितियों को देखते हुए दी गई बर्खास्तगी कानून की कसौटी पर खरी नहीं उतरती। अतः कोर्ट ने कांस्टेबल की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया।