झज्जर: शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. नवरात्र के पहले दिन झज्जर जिले के बेरी कस्बे में स्थित विश्व प्रसिद्ध मां भीमेश्वरी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. नवरात्र के पहले दिन मंदिर में माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना विधिवत रूप से की गई. सुबह से ही मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा और भक्तों ने मां जयकारे लगाए.
कोलकाता से मंगवाए गए मां के पोशाक: नवरात्र के पहले दिन मां की प्रतिमा को विशेष श्वेत रंग की रत्नजड़ित पोशाक और स्वर्ण आभूषणों से सजाया गया. पुजारियों ने बताया कि इस बार मां की पोशाक कोलकाता से मंगवाई गई है. पोशाक पहनाने के बाद मां को चांदी के सिंहासन पर विराजमान किया गया. 10 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन के लिए प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. इस बार आयोजन को प्लास्टिक मुक्त रखने का भी प्रयास किया जा रहा है.
श्रद्धालुओं में दिखा उत्साह: नवरात्र के दौरान यहां न केवल पूजा-पाठ और दर्शन होते हैं, बल्कि हरियाणा का सबसे बड़ा घोड़े और खच्चरों का पशु मेला भी आयोजित होता है.यह मेला व्यापारियों और पशु प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है. श्रद्धालु यहां माता के दर्शन के साथ नवजात शिशुओं के मुंडन संस्कार भी करवाते हैं, ताकि उनके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे. इतना ही नहीं नवविवाहित जोड़े मां के दरबार में आकर सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं.
मंदिर के पुजारी की अपील: मां के मंदिर के पुजारी कुलदीप ने नवरात्र के पहले दिन श्रद्धालुओं से अपील करते हुए कहा कि, “वे मंदिर परिसर और आयोजन क्षेत्र को स्वच्छ और प्लास्टिक मुक्त बनाए रखने में सहयोग करें. मां भीमेश्वरी देवी अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं, बस आस्था और अनुशासन के साथ दरबार में हाजिरी लगाएं.”
महाभारत काल से जुड़ा मंदिर का इतिहास: बेरी स्थित मां भीमेश्वरी देवी मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि माता भीमेश्वरी देवी, पांडवों की कुलदेवी माता हिंगलाज भवानी का ही स्वरूप हैं. महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को कुलदेवी का आशीर्वाद लेने भेजा था, लेकिन रास्ते में बेरी में उन्होंने देवी की प्रतिमा को नीचे रख दिया, जिसके बाद से मां यहीं विराजमान हो गईं. तभी से इस स्थान को शक्ति पीठ के रूप में पूजा जाता है. यह मंदिर दो विशेषताओं के लिए जाना जाता है-एक मां की प्रतिमा और दूसरा भव्य मंदिर. यहां सुबह 5 बजे मां की प्रतिमा को बेरी कस्बे से बाहर स्थित मंदिर में लाया जाता है, जहां श्रद्धालु दर्शन करते हैं. फिर दोपहर 12 बजे प्रतिमा को भीतर वाले मंदिर में विश्राम के लिए ले जाया जाता है.