लाल किला के पास हुए बम धमाके की जांच जैसे-जैसे अपने मुकाम की ओर पहुंच रही है वैसे-वैसे चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। जांच से जुड़े अधिकारियों की मानें तो व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के डॉक्टरों ने सीमा पार बैठे आतंकी आकाओं से सीरिया या अफगानिस्तान जाकर वहां के आतंकी संगठनों में शामिल होने की चाहत जताई थी। हालांकि सीमा पार के हैंडलरों ने टेरर मॉड्यूल के डॉक्टरों को भारत में ही रह कर धमाकों को अंजाम देने का निर्देश दिया था।
सीरिया-अफगान टेरर ग्रुप्स में एंट्री चाहते थे डॉक्टर
जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि आतंकी मॉड्यूल में भर्ती किए गए डॉक्टरों डॉ. मुजम्मिल गनई, डॉ. अदील राठेर, डॉ. मुजफ्फर राठेर और डॉ. उमर उन नबी को सबसे पहले टेलीग्राम के निजी ग्रुप में जोड़ा गया था। इस ग्रुप से उनको बरगलाना शुरू किया गया था। सूत्र बताते हैं कि भर्ती किए गए डॉक्टरों ने शुरू में सीरिया या अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में जाकर वहां के आतंकी समूहों में शामिल होने की इच्छा जताई थी। माना जा रहा है कि इनकी मंशा सीरिया या अफगानिस्तान में दहशतगर्दी की थी।
भारत में धमाकों को अंजाम देने के निर्देश
हालांकि सीमा पार बैठे उनके उनके आकाओं ने उन्हें भारत में ही रह कर भीतरी इलाकों में बम धमाकों को अंजाम देने के निर्देश दिए थे। जांच से पता चला कि हाल ही में जांच एजेंसियों के रडार पर आए व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के मुख्य संचालक उकासा, फैजान और हाशमी हैं। तीनों आतंकी सीमा पार से भारत में आतंकी गतिविधियों को चला रहे हैं। अक्सर इनके नाम जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी नेटवर्क से जुड़े मामलों में सामने आते हैं।
ऐसे हुआ भंडाफोड़
बता दें कि सबसे पहले जम्मू-कश्मीर पुलिस पोस्टरों की जांच को लेकर ऐक्टिव हुई थी। जांच पड़ताल के दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस ने यूपी और हरियाणा पुलिस के साथ संपर्क साधा था। फिर सफेद पोश आतंकी मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था। पुलिस टीमें फरीदाबाद पहुंची जहां से 2900 किलोग्राम विस्फोटक बरामद हुआ था। बाद में अल फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों के नाम सामने आए थे।
डिजिटल प्लेटफार्मों के जरिए भर्ती
साल 2018 के बाद से आतंकी समूहों की रणनीति में बदलाव देखने को मिला है। अब आतंकवादी समूह डिजिटल मंचों के जरिए लोगों की भर्ती करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि पुख्ता सुरक्षा उपायों के कारण प्रत्यक्ष और आमने-सामने की बातचीत मुश्किल होती जा रही है।
ऐसे लोगों की करते हैं भर्ती
सूत्रों के मुताबिक, सीमा पार बैठे हैंडलर सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी युवाओं की पहचान करते हैं। एक बार जब भर्ती होने के इच्छुक युवाओं की पहचान हो जाती है तो उन्हें टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप पर निजी ग्रुप में जोड़ दिया जाता है। वहां से उनको उकसाया जाता है।
ऐसे देते हैं ट्रेनिंग
सूत्रों ने बताया कि आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने का काम सौंपे जाने से पहले भर्ती लोगों को वर्चुअल ट्रेनिंग दी जाती है। उनको यूट्यूब ट्यूटोरियल उपलब्ध कराए जाते हैं । ‘वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क’ और फर्जी पहचान वाली आईडी का व्यापक उपयोग इन टेरर नेटवर्क को पकड़ में आने से बचने में मदद करता है। आतंकी एन्क्रिप्टेड संचार के लिए ‘टेलीग्राम’ और ‘मैस्टोडॉन’ जैसे मंचों का इस्तेमाल करते हैं।

















