चंडीगढ़: टाइप-2 डायबिटीज… जिसे लंबे समय तक सिर्फ बुजुर्गों की बीमारी माना जाता रहा है, अब तेजी से युवाओं और बच्चों तक पहुंच रही है. पीजीआई चंडीगढ़ के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने बताया कि 10–12 वर्ष की उम्र के बच्चे भी अब इस बीमारी का शिकार बन रहे हैं.
जानें क्या है टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज: टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज दो अलग-अलग प्रकार की शुगर की बीमारिया हैं. टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्न्याशय की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट कर देती है, जिससे शरीर बिल्कुल इंसुलिन नहीं बना पाता और मरीज को जीवन भर इंसुलिन इंजेक्शन लेने की आवश्यकता होती है. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज में शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या इंसुलिन का सही उपयोग नहीं कर पाता. इसके मुख्य कारण जीवनशैली, मोटापा और आनुवंशिकता हैं. टाइप 2 को अक्सर जीवनशैली में सुधार, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और कभी-कभी दवाओं या इंसुलिन से नियंत्रित किया जा सकता है. इन दोनों प्रकारों के कारण, उपचार और प्रबंधन अलग-अलग होते हैं.
रोगियों की उम्र में आया बदलाव: इस बारे में पीजीआई चंडीगढ़ के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉक्टर सोहम मुखर्जी का कहना है कि, “पिछले एक दशक में टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों की उम्र में बड़ा बदलाव आया है. पहले 50–60 वर्ष की उम्र में यह बीमारी आम थी, लेकिन अब कम उम्र के लोग भी बड़ी संख्या में डायबिटीज से ग्रस्त हो रहे हैं.”
बढ़ता मोटापा और गलत खान-पान मुख्य कारण: डॉ. सोहम के अनुसार बच्चों और युवाओं में डायबिटीज बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है लाइफस्टाइल में बदलाव, हाई-कैलोरी डाइट, और लगातार बैठकर रहने की आदतें. उन्होंने बताया कि, “बचपन में बढ़ता मोटापा, पैकेज्ड फूड, फास्ट फूड और स्क्रीन टाइम में बढ़ोत्तरी बच्चों के शरीर को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं. कई मामलों में देखा गया है कि बच्चे पूरे दिन मोबाइल पर समय बिताते हैं और किसी भी प्रकार की शारीरिक गतिविधि नहीं करते, जिसके कारण उनमें इंसुलिन रेज़िस्टेंस बढ़ने लगता है और आगे चलकर डायबिटीज का जोखिम भी बढ़ जाता है.”
पीजीआई की ओपीडी में हर हफ्ते 1000 से अधिक मरीज: पीजीआई के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग प्रमुख और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सोहम ने बताया कि, “ओपीडी में हर हफ्ते लगभग 1000 से अधिक मरीज दर्ज होते हैं, जिनमें से 10% नए होते हैं. विभाग की कुल ओपीडी का 10–15% हिस्सा केवल डायबिटीज के मरीजों का होता है.बढ़ते मामलों को देखते हुए पीजीआई अब हर माह स्वास्थ्य शिक्षा सत्र आयोजित करने की योजना बना रहा है, ताकि लोग बीमारी को समझें और समय रहते आवश्यक कदम उठा सकें.”
NCD रजिस्ट्री रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े: हाल ही में जारी चंडीगढ़ नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज रजिस्ट्री के अनुसार युवा वर्ग में यह बीमारी महामारी की तरह फैल रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जीवनशैली में बदलाव नहीं किया गया, तो आने वाले समय में भारत दुनिया का सबसे अधिक डायबिटीज मरीजों वाला देश बन सकता है.
कैसे होता है डायबिटीज: डॉ. सोहम बताते हैं कि, “डायबिटीज होने पर रक्त में ग्लूकोज (शुगर) का स्तर बढ़ जाता है, क्योंकि शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर शरीर का इंसुलिन काम करना बंद कर देता है. लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज कई गंभीर बीमारियों को जन्म देती है. जैसे- स्ट्रोक, हार्ट अटैक, किडनी फेल, आंखों की रोशनी कम होना, नसों का नुकसान और अंग काटने तक की नौबत तक आ जाती है. यही कारण है कि डॉक्टर इसे साइलेंट किलर कहते हैं.
लाइफस्टाइल सुधार से कम हो सकता है खतरा: डॉ. सोहम का कहना है कि, “यदि लोग समय रहते जागरूक हो जाएं, तो टाइप-2 डायबिटीज का खतरा लगभग 60% तक कम किया जा सकता है. लोगों को दैनिक जीवन में कुछ बदलाव करना चाहिए, जैसे कि रोजाना 30 मिनट तेज चलना, जंक फूड और पैकेज्ड फूड कम करना, तंबाकू का सेवन बंद करना, तनाव नियंत्रित करना, पर्याप्त नींद लेना. अपने जीवनशैली में इस तरह की आदतों को ठीक करके डायबिटीज पर काबू पाया जा सकता है.”
उम्र भर चलता है इलाज: डॉ. सोहम ने बताया कि, “टाइप-2 डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जिसे कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह ख़त्म करना बहुत मुश्किल होता है. मरीजों को आजीवन आहार नियंत्रण, नियमित व्यायाम, दवाइयां और समय–समय पर जांच की आवश्यकता पड़ती है. लोगों में ये गलतफहमी है कि दवाईयां छोड़ देने से सब ठीक हो जाएगा, जबकि सच इसके बिल्कुल उलट है.”
माता-पिता के लिए सलाह: माता-पिता को सलाह देते हुए डॉ. सोहम ने कहा कि, “बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए घर में ही कुछ बदलाव करना जरूरी है. जैसे कि बच्चों को रोजाना कसरत या आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रेरित करें. उन्हें ताजा और घर का बना खाना खिलाएं. जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक और पैकेज्ड स्नैक्स कम दें. परिवार में एक साथ व्यायाम की आदत विकसित करें. स्क्रीन टाइम तय करें. यदि माता-पिता अपने बच्चों की आदतें सुधारें, तो वे उन्हें डायबिटीज जैसे रोगों से बचा सकते हैं.”
समय पर जांच और शुरुआती निदान सबसे महत्वपूर्ण: डॉ. सोहम ने आगे कहा कि, “टाइप-2 डायबिटीज का सबसे बड़ा खतरा है कि ये शुरुआती चरण में कोई लक्षण नहीं दिखाता. इसलिए लोग इसकी गंभीरता को समझ नहीं पाते और जब तक पता चलता है, तब तक शरीर को काफी नुकसान हो चुका होता है. ऐसे में 30 वर्ष से ऊपर हर व्यक्ति को साल में एक बार शुगर जांच अवश्य करवानी चाहिए.”
“यह समय चेतने का है”: डॉ. सोहम मुखर्जी ने बताया कि, “बढ़ती डायबिटीज दर भारत के लिए खतरे की घंटी है. यदि जीवनशैली में बदलाव नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में देश में टाइप-2 डायबिटीज के मरीज तेजी से बढ़ेंगे और यह बच्चों और युवाओं की आने वाली पीढ़ी के लिए बड़ा स्वास्थ्य संकट बन जाएगा. डायबिटीज़ को रोकना आपके हाथ में है. समय रहते कदम उठाना बेहद जरूरी है.”

















