भिवानी। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने पंचायत राज संस्थानों (पीआरएलएस) एवं शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबीएस) में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर उनके पति के नाम से प्रत्याशी प्रतिनिधित्व की गंभीर समस्या पर कड़ा रुख अपनाया है।
इसे गंभीरता से लेते हुए एनएचआरसी ने 32 राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के शहरी निकायों और पंचायती राज विभागों के प्रमुख सचिवों को 30 दिसंबर को आयोग के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए सशर्त समन जारी किए हैं। यदि 22 दिसंबर तक विस्तृत एटीआर आयोग को मिल जाती है तो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जा सकती है। आयोग ने दो टूक कहा है कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि वास्तविक नेतृत्व और निर्णयकारी भूमिका सुनिश्चित करना है।
क्या थी शिकायत
आयोग का दायित्व केवल अधिकारों का संरक्षण करना ही नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि सांविधानिक प्रावधानों का वास्तविक और प्रभावी क्रियान्वयन हो। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या रिश्तेदार शासन चलाते हैं, तो यह महिलाओं की गरिमा, समानता और आत्म निर्णय के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है। -सुशील वर्मा, पूर्व सदस्य, हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग।
एनएचआरसी का स्पष्ट मत है कि महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर किसी भी प्रकार का प्रत्याशी प्रतिनिधित्व, चाहे वह ‘सरपंच पति’ या ‘प्रधान पति’ के रूप में हो या किसी अन्य अनौपचारिक माध्यम से संविधान की मूल भावना के विपरीत है। लोकतंत्र में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि ही अपने पद की वैधानिक, प्रशासनिक और निर्णयकारी अधिकारिता की वास्तविक धारक हैं।

















