चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा पुलिस विभाग के कुछ कर्मचारियों द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पुरानी पैंशन योजना (ओ.पी.एस.) के लिए निर्धारित कट-ऑफ तिथि को चुनौती दी गई थी। अदालत ने साफ किया कि पैंशन से जुड़ा यह मामला विशुद्ध रूप से वित्तीय और नीतिगत है जिसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नहीं है। इस फैसले से पुलिस कर्मियों को झटका लगा है जबकि राज्य सरकार को बड़ी राहत मिली है।
याचिकाकर्ताओं ने 8 मई 2023 की अधिसूचना को रद्द करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि ओ.पी.एस. के लिए कट-ऑफ तिथि 18 अगस्त 2008 के बजाय 28 अक्तूबर 2005 तय की जानी चाहिए। उनका कहना था कि वे उस अवधि में चयन प्रक्रिया में शामिल हुए थे, जब ओ.पी.एस. लागू थी। पुलिस कर्मियों ने अदालत को बताया कि 3 मई 2006 को जारी विज्ञापन तहत उन्होंने कॉन्स्टेबल पद के लिए आवेदन किया था जिसकी अंतिम तिथि 24 मई 2006 थी। चयन प्रक्रिया के सभी चरण सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद उन्हें वर्ष 2007 में नियुक्ति पत्र जारी किए गए। इसलिए वे स्वयं को पुरानी पेंशन योजना का पात्र मानते हैं।
न्यायालय को यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार ने 28 अक्तूबर 2005 को संविधान के अनुच्छेद 309 तहत अधिसूचना जारी कर पंजाब सिविल सेवा नियम (हरियाणा में लागू) में संशोधन किया था। इसके तहत 1 जनवरी 2006 या उसके बाद नियुक्त होने वाले कर्मचारियों को नई परिभाषित अंशदान पैंशन योजना के अंतर्गत लाया गया। बाद में 18 अगस्त 2008 की अधिसूचना के जरिए एन.पी.एस. को औपचारिक रूप से लागू किया गया जिसे 1 जनवरी 2006 से प्रभावी माना गया। राज्य सरकार ने दलील दी कि उसने केंद्र सरकार की नीति का अनुसरण किया है और यह पूरी तरह नीतिगत निर्णय है। उच्च न्यायालय ने इस तर्क से सहमति जताते हुए याचिका खारिज कर दी।

















