बिहार पुलिस पर कार्रवाई: डॉक्टर को फंसाने के लिए बदल दी कहानी, झूठे गवाह के आधार पर बनाया केस, IG ने सख्त कदम उठाए

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भागलपुर जिले में पुलिस विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाने वाला मामला सामने आया है. पटना के एक डॉक्टर को झूठे गवाहों और फर्जी बयानों के आधार पर फंसाने की कोशिश करने वाले पुलिस अधिकारियों पर अब कार्रवाई हुई है. रेंज आईजी की जांच में दोषी पाए जाने पर दो इंस्पेक्टर और दो दरोगा के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई की गई है.

जांच में हुए बड़े खुलासे

मामले की गंभीरता को देखते हुए रेंज आईजी ने एक स्वतंत्र जांच टीम बनाई. जांच में पुख्ता सबूत मिले कि गवाहों के बयान मनगढ़ंत तरीके से तैयार किए गए थे. रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि पुलिस अधिकारियों ने व्यक्तिगत लाभ या दबाव में आकर गलत कार्रवाई की थी.

जांच पूरी होने के बाद रेंज आईजी ने दो इंस्पेक्टर और दो दरोगा को दोषी पाया. उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की गई है. सूत्रों के मुताबिक, इन अधिकारियों पर निलंबन और सेवा अभिलेख में प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करने का आदेश जारी किया गया है. जिन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी उनमें तत्कालीन विधि व्यवस्था अंचल इंस्पेक्टर शांता सुमन और जोग्सर थानाध्यक्ष कृष्णनंदन कुमार सिंह शामिल हैं.

पुलिस विभाग में मचा हड़कंप

इस कार्रवाई के बाद भागलपुर पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया है. वरिष्ठ अधिकारियों ने साफ निर्देश दिया है कि अगर कोई पुलिसकर्मी कानून की सीमा लांघेगा या किसी निर्दोष को फंसाने की कोशिश करेगा तो उसे बख्शा नहीं जाएगा. रेंज आईजी ने बयान जारी कर कहा कि पुलिस का काम न्याय दिलाना है, किसी को परेशान करना नहीं. जिनकी भूमिका संदिग्ध पाई गई है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है ताकि भविष्य में इस तरह की गलती दोबारा न हो.

क्या था पूरा मामला?

पटना के इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के वरीय चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. नवल किशोर सिंह ने 21 दिसंबर 2024 को कहलगांव के शंकर पाल समेत 1520 लोगों के खिलाफ जोग्सर थाने में केस दर्ज कराया था. उनका आरोप था कि इन लोगों ने उनके मकान की दीवार तोड़ी, जमीन में जबरन प्रवेश किया, सफाई की और पुरानी खिड़की उखाड़ दी.

पुलिस ने जांच के बाद इस मामले को असत्य श्रेणी में डालते हुए भूमि विवाद बताकर फ़ाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. रिपोर्ट में दो गवाहों के बयान बिल्कुल एक जैसे थे. जब रेंज आईजी विवेक कुमार ने समीक्षा की तो इन गवाहों के बयानों में ही पुलिस अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत का खुलासा हो गया. जांच में मिली विसंगतियों को पक्षपातपूर्ण कार्रवाई मानते हुए चारों अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया और विभागीय कार्रवाई शुरू की गई.