27 साल की उम्र में हिला दी थी अंग्रेजी सरकार की नींव, हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा… कहानी शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी की

SHARE

देश अपनी आजादी का 79वां वर्षगांठ मना रहा है. ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के साथ 15 अगस्त को राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है. वीर सपूतों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुर्बानियों को याद करने का यह पावन अवसर है. इन्हीं वीर शहीदों में से एक अमर नायक हैं राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, जिन्होंने मात्र 27 वर्ष की आयु में देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को हंसते-हंसते चूम लिया. उनकी शहादत और काकोरी कांड की गूंज आज भी देशवासियों के दिलों में गर्व और प्रेरणा जगाती है.

9 अगस्त 1925 को उत्तर प्रदेश के काकोरी में एक ऐसी घटना घटी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी. अमर शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, डॉ. रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान सहित 23 क्रांतिकारियों ने मिलकर लखनऊ के पास काकोरी में अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूट लिया. इस साहसिक कार्रवाई का मकसद था क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना था. ताकि अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष को और तेज किया जा सके. इस घटना ने अंग्रेजी सरकार को तिलमिला दिया और उसने क्रांतिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरू कर दी.

क्रांतिकारियों फांसी की सजा

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी सरकार ने 23 क्रांतिकारियों के खिलाफ 10 महीने तक मुकदमा चलाया. इस मुकदमे में राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, डॉ. रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान को फांसी की सजा सुनाई गई और अन्य को क्रांतिकारियों को अलग-अलग सजा दी गई. राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को 17 दिसंबर 1927 को गोंडा के मंडलीय कारागार में फांसी दी गई. उनकी शहादत ने न केवल उनके साथी क्रांतिकारियों को, बल्कि पूरे देश को आजादी की लड़ाई के लिए और प्रेरित किया.

गोंडा का फांसी घर बना अमर शहीद स्मारक

आज गोंडा का वह मंडलीय कारागार, जहां राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी दी गई थी, ‘अमर शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी स्मारक’ के नाम से जाना जाता है. वो फांसी घर आज भी वहां मौजूद है, जो उस दौर की क्रांतिकारी गाथा का मूक गवाह है. फांसी से पहले लाहिड़ी को जिस काल कोठरी में रखा गया था, उसे अब ‘राजेंद्र नाथ लाहिड़ी वार्ड’ नाम दिया गया है. यह स्थल न केवल इतिहास के पन्नों को जीवंत करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और बलिदान की प्रेरणा भी देता है.

मात्र 27 वर्ष की उम्र में शहीद होने वाले राजेंद्र नाथ लाहिड़ी का जीवन देश के प्रति समर्पण का प्रतीक है. काकोरी कांड में उनकी भूमिका न केवल साहसिक थी, बल्कि यह उनकी रणनीतिक सूझबूझ और देशभक्ति का भी परिचायक थी. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर यह साबित कर दिया कि अंग्रेजी शासन को चुनौती दी जा सकती है. गोंडा का अमर शहीद स्मारक आज भी हमें याद दिलाता है कि आजादी की कीमत अनगिनत वीरों के बलिदान से चुकाई गई है.