भिवानी का मस्ता परिवार निभा रहा परंपरा, पीले चावल की पोटली में दे रहा विवाह निमंत्रण

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भिवानी: आज के समय में शादी-विवाह में नए-नए रिवाज देखे जा रहे हैं. कहीं पर शादी-ब्याह में लाखों खर्च किए जाते हैं. कहीं पर सादगी से शादी समारोह संपन्न की जाती है. ऐसे में शादी की चकाचौंध में कहीं परंपराएं छूटती जा रही हैं, तो कहीं पर बड़े ही अच्छे तरीके से पुरानी परंपराओं को निभाया जा रहा है. ऐसे में अब भिवानी का एक परिवार शादी निमंत्रण को लेकर चर्चा बना हुआ है.

दरअसल, भिवानी निवासी पवन मस्ता ने अपने बेटे की शादी के लिए परंपरागत मूल्यों को अपनाते हुए बेटे की शादी का निमंत्रण अनूठे तरीके से दिया है. उन्होंने एक पोटली में पीले चावल भरकर अतिथियों को शादी का निमंत्रण दिया है.

भारतीय परंपरानुसार शादी निमंत्रण: पवन मस्ता का कहना है कि “भारतीय परंपरा रही है कि पीले चावल पवित्रता, सौभाग्य व समृद्धि का प्रतीक है. आज से दो दशक पहले पीले चावल कागज में लपेटकर या पोटली में बांधकर निमंत्रण के लिए अतिथियों के घर जाकर उन्हे दिए जाते थे. तथा नवविवाहित जोड़े को सुखी जीवन के आर्शीवाद मांगने की कामना अतिथियों से की जाती थी. उन्होंने इसी बात को आगे बढ़ाते हुए अपनी परंपरा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से पोटली में चावल भरकर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों व अन्य अतिथियों को भेंट किए हैं. ताकि वे भारतीय परंपरा के अनुसार उनका निमंत्रण पत्र स्वीकार कर शादी में पहुंचे”.

2 नवंबर को होगी शादी: उन्होंने बताया कि “पहले समय में शादी से पहले मेल (प्रीतिभोज) कार्यक्रम होता था. उसके लिए पीले चावल से निमंत्रण दिया जाता था. तथा बारात के निमंत्रण के लिए सुपारी का प्रयोग होता था. पवन मस्ता के बेटे आकाश मस्ता म्यूंसीपल कमेटी सदस्य की शादी अंबाला की शिक्षिका ज्योति से 2 नवंबर को होनी है. इसके लिए 30 नवंबर को मेल कार्यक्रम का न्योता पवन मस्ता पोटली में चावल भरकर अतिथियों को दे रहे हैं”.

पीले चालव की पोटली पर निमंत्रण: गौरतलब है कि पवन मस्ता द्वारा भारतीय संस्कृति का अनुकरण करते हुए जिस प्रकार से कम खर्च व समृद्धि के प्रतीक चावलों की पोटली के रूप में जो निमंत्रण दिया जा रहा है, वह अपने आप में अनूठा है. उन्होंने इस पीले चावल की पोटली पर ही वर-वधु के नाम व प्रीतिभोज तथा शादी की तारीख, समय व स्थान का विवरण भी लिख रखा है. जो आज के महंगाई के समय में ना केवल खर्च बचाने वाला है, बल्कि सांस्कृतिक परंपराओं के निर्वहन का भी प्रतीक है.