भिवानी। जिले के गांव उमरावत सहित सांगा माइनर नहर से जुड़े क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पर्याप्त नहरी पानी की मांग लंबे अर्से से उठ रही है लेकिन हालात यह हैं कि न पीने के लिए पानी उपलब्ध है और न ही खेतों की सिंचाई की कोई पुख्ता व्यवस्था। सरकार की ओर से सांगा माइनर के नवनिर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए इसके बावजूद यह परियोजना धरातल पर पूरी तरह विफल नजर आ रही है।
ग्रामीण भोलू राम, उमेद सिंह, रामधारी, संदीप कुमार, संजय कुमार और मुकेश कुमार ने बताया कि गांव में हालात इतने खराब हैं कि एक माह में महज एक या दो बार ही पानी की आपूर्ति हो पाती है। इससे उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि माइनर से पहले खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए बनाई गई छोटी-छोटी नालियां पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कई स्थानों पर नालियां टूट चुकी हैं और कुछ जगहों से ईंटें भी निकाल ली गई हैं। ऐसी स्थिति में यदि कभी नहर में पानी छोड़ा भी जाता है तो वह खेतों तक पहुंच ही नहीं पाता जिससे किसानों की फसलें बर्बाद हो रही हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि नहर से आठ इंची पाइप लाइन के जरिए गांव के जलघर तक पानी पहुंचाने के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए लेकिन यह योजना भी पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। नियमित पेयजल उपलब्ध नहीं होने से महिलाओं और बुजुर्गों को सबसे अधिक परेशानी झेलनी पड़ रही है।
बंजर होती जमीन, डार्क जोन में तब्दील क्षेत्र
सांगा माइनर से उमरावत, धारेडू, पूर्णपुरा, ढाणा नरसान, कोंट और मानहेरू तक नहर के आसपास के गांवों की हजारों एकड़ जमीन अब बंजर होती जा रही है। भू-जल स्तर लगातार गिरने से यह क्षेत्र डार्क जोन घोषित हो चुका है जहां खेती करना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है। किसानों का कहना है कि पानी की किल्लत के चलते कई किसान अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर शहरों की ओर पलायन कर चुके हैं। ग्रामीणों ने बताया कि बेटियों की शादी जैसे सामाजिक कार्यों के लिए किसानों को बैंकों में जमीन गिरवी रखनी पड़ रही है या फिर साहूकारों से कर्ज लेना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यदि समय पर सिंचाई का पानी मिल जाए तो वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं। ग्रामीणों ने यह भी कहा कि हर बार विधायक और जनप्रतिनिधियों के सामने समस्या रखी जाती है लेकिन केवल आश्वासन ही मिलते हैं। जमीनी स्तर पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

















