मौलाना अरशद मदनी बोले: “हिंदू-मुसलमान के आधार पर देश नहीं चल सकता”

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भारत का सबसे पुराना मुस्लिम संगठन जमीअत उलमा-ए-हिंद ने देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आजाद भारत में देश के विकास और निर्माण में जो असाधारण सेवाएं दी हैं उसका उदाहरण नहीं मिलता. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपनी इस 100 वर्षीय यात्रा में न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे हैं, परंतु अपने राष्ट्रवादी सिद्धांत पर दृढ़ रहते हुए उसने मानवीय सेवाएं दी हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है.

जमीअत उलमा-ए-हिंद ने की लोगों की मदद

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों के बेघर पीड़ित हों या असम के बाढ़ एवं दंगा पीड़ित, गुजरात और बिहार के पीड़ित हों या उड़ीसा, केरल, कश्मीर के पीड़ित, हर जगह जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपनी सेवाएं दी हैं. सबसे अहम बात यह है कि अपनी सेवाएं देने में धार्मिक भेदभाव नहीं किया बल्कि मानवता के आधार पर काम किया है. इसलिए जब पंजाब, जम्मू कशमीर और हिमाचल में लोग विनाशकारी बाढ़ से बेघर हुए तो जमीअत उनकी मदद के लिए सबसे पहले मैदान में उतरा और इसके कार्यकर्ता लोगों की सेवा में जुट गए. अभी तक प्रभावितों में रीलीफ और सहायता कार्य जारी है.

मुसीबत की घड़ी में जमीअत आपके साथ खड़ी

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष के आदेश पर मुफ्ती मुहम्मद यूसुफ कासमी और मुफ्ती अबदुल क़दीर का एक प्रतिनिधिमंडल ने कपूरथला और सुलतानपुर लोधी का दौरा किया. प्रतिनिधिमंडल ने वहां पहुंच कर बाढ़ से प्रभावित किसानों और आम लोगों से मुलाकात की, उनकी समस्याएं सुनीं और 200 किसानों में गेहूं के बीज और 25-25 लीटर डीजल वितरित किए ताकि वो अपनी खेती बाड़ी और रोजगार की व्यवस्था को बहाल कर सकें. इस अवसर पर प्रतिनिधिमंडल ने प्रभावितों को साहस, धैर्य और सहायता का आश्वासन देते हुए कहा कि इस मुसीबत की घड़ी में जमीअत उलमा-ए-हिंद आपके साथ खड़ी है.

कब हुई थी जमीअत उलमा-ए-हिंद की स्थापना

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जमीअत 1919 में स्थापित हुई थी और उस समय इसका जो संविधान बना था अब भी वही है. इसकी मूल धाराओं में मुहब्बत, एकता और एकजुटता पैदा करने के लिए व्यावहारिक प्रयास करने के निर्देश मौजूद हैं. जमीअत उलमा-ए-हिंद हर ज़माने में देश की आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद अपने उसी सिद्धांत पर दृढ़ है और सदैव रहेगी.

धार्मिक हिंसा और नफरत का खेल जारी

उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति गंभीर है, हर जगह धार्मिक हिंसा और नफरत का खेल जारी है. हालात को विस्फोटक बना दिया गया है, लेकिन जमीअत उलमा-ए-हिंद का संविधान और चरित्र ऐसा नहीं है, हम हर जगह लोगों को इस बात को समझाते हैं कि आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता बल्कि आग को बुझाने के लिए उस पर पानी डालना ज़रूरी है.

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक लोग नफरत की राजनीति कर रहे हैं और अपनी कुर्सी बचाने के लिए हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई करा रहे हैं लेकिन हिंदू-मुसलमान करके सत्ता तो प्राप्त की जा सकती है लेकिन देश नहीं चलाया जा सकता है. हम सबसे मुहब्बत करते हैं और हमेशा करते रहेंगे, हमने धर्म के आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं किया.

पुराने इतिहास को आग लगाने की कोशिश

इस संबंध में पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक और मेवात आदि में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली तबाही का उन्होंने हवाला दिया और कहा कि हर जगह सबसे पहले पीड़ितों के बीच जमीअत उलमा-ए-और इसके लोग पहुंचे और हर जगह उन्होंने रीलीफ और सहायता का काम धर्म से ऊपर उठकर किया. वर्तमान स्थिति की पृष्ठभूमि में मौलाना मदनी ने कहा कि भारत में सदियों से विभिन्न धर्मों के लोग रहते आए हैं, शहर ही नहीं गांवों में आप जाकर देखें, वहां हिंदू और मुस्लमान दोनों मिल-जुल कर रहते हैं. मगर बुरा हो सांप्रदायिकत मानकसिता का, उन्होंने आज अपने पुराने इतिहास को आग लगाने की ठान ली है.

धर्म के नाम पर हिंसा अस्वीकार्य

मौलाना मदनी ने देश के इतिहास को सामने रखते हुए कहा कि देश को प्यार-मुहब्बत की ताकत से ही आजाद कराया गया था. आजादी के मतवालों ने जगह-जगह इसके लिए अपना खून पानी की तरह बहा दिया था, आजादी के लिए बहने वाला यह खून केवल हिंदू या मुस्लमान का नहीं था बल्कि यह दोनों का था. उन्होंने कहा कि हम अपने साथ इसी इतिहास को लेकर चलते हैं, जब तक जिंदा हैं चलते रहेंगे. नफरत की राजनीति को नफरत से नहीं मिटाया जा सकता बल्कि उसे प्यार-मुहब्बत से ही समाप्त किया जा सकता है. मदनी ने कहा कि धर्म के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा स्वीकार्य नहीं हो सकती.

सहनशीलता, मुहब्बत और एकजुटता का संदेश

उन्होंने कहा कि धर्म मानवता, सहनशीलता, मुहब्बत और एकजुटता का संदेश देता है इसलिए जो लोग इसका प्रयोग नफ़रत और हिंसा के लिए करते हैं वो अपने धर्म के सच्चे अनुयायी नहीं हो सकते. मौलाना मदनी ने चेतावनी देते हुए कहा कि नफरत से देश बर्बाद हो जाएगा. क्षेत्र के लोगों और किसानों ने जमीअत उलमा-ए-हिंद विशेष रूप से अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा कि जब हमारी स्थिति भयावह थी, हर कोई हमसे मुंह मोड़ चुका था, उस समय जमीअत हमारे लिए सहारा बनी.

उन्होंने कहा कि दिलासा सबने दिया मगर काम जमीअत उलमा-ए-हिंद ने किया. दो महीनों से यह लोग हमारे बीच हैं, कभी राशन दे रहे हैं, कभी डीजल, कभी बीज. यह लोग केवल सहायता नहीं करते बल्कि हमारे साहस को भी बढ़ाते हैं. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने हमें कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा करके एहसास दिलाया कि सभी लोग चाहे उनका धर्म कुछ भी हो एक शरीर के समान हैं.