पानीपत: दशहरे पर श्री हनुमान स्वरूपी शोभा यात्रा रही आकर्षण का केंद्र, पाकिस्तान की सालों पुरानी परंपरा बरकरार

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पानीपत: हरियाणा के पानीपत में सालों पुरानी एक अनोखी परंपरा के बारे में आज आपको बताएंगे. दरअसल, ये परंपरा पाकिस्तान से चली आ रही है, जो हरियाणा के पानीपत में आज भी बरकरार है. दशहरा पर्व पर अनोखे स्वरूप वाले श्री हनुमान जी आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं. आजादी के बाद से लगातार शहरभर में परिक्रमा करते हैं और 85 साल पहले पाकिस्तान से यह परंपरा शुरू हुई थी, जिसमें श्री हनुमान स्वरूप परिक्रमा की जाती है.

सालों पुरानी परंपरा: पानीपत में विजयदशमी पर्व पर दशहरे से ज्यादा चर्चा श्री हनुमान स्वरूप शोभायात्रा की रहती है, जो खासतौर से आकर्षण का केंद्र रहती है. आजादी के बाद से ही श्री हनुमान स्वरूप धारण करने और शोभायात्रा निकालने की परंपरा निभाई जा रही है. रिपोर्ट में आपको इस शोभायात्रा की कहानी विस्तार से बताते हैं.

सालों पहले पाकिस्तान से हिंदुस्तान पहुंची थी परंपरा: 85 साल पहले 1940 में यह परंपरा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लैय्या शहर में दशहरे पर हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा शुरू हुई थी. बंटवारे के समय श्री राम भक्त ढालूराम और दुलीचंद, लैय्या में यह स्वरूप पानीपत लेकर पहुंचे. हनुमान स्वरूप धारण करने का उद्देश्य वीर हनुमान के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना है.

हनुमान स्वरूपी शोभायात्रा: पानीपत में दशहरा पर्व से दो दिन पहले हनुमान स्वरूप धारण कर भ्रमण करने की अनूठी परंपरा है. श्री राम दशहरा कमेटी, बरसत रोड के महासचिव सुभाष गुलाटी ने बताया कि “यह परंपरा 1940 से पाकिस्तान से पंजाब प्रांत के लैय्या जिले में शुरू हुई थी. उस समय करीब 45 किग्रा की पांच फीट, तीन इंच की मूर्ति शीशा, सिंदूर, चिमकारी व चित्रकारी से तैयार की लुगदी, चिमका गई थी”.

सैकड़ों भक्त धारण करते हैं हनुमान स्वरूप: उन्होंने बताया कि “जिस समय देश का बंटवारा हुआ, लैय्या शहर से बड़ी संख्या में हिंदू समाज के लोग भारत आए और पानीपत में आकर बसे थे. उसी समय वह अपने साथ हनुमान स्वरूप और परंपरा भी लेकर आए थे. आजादी के बाद दशहरे पर पानीपत में राम भक्त ढालूराम और दुलीचंद ने लैय्या में हनुमान स्वरूप धारण किया था. उस समय से ही यह परंपरा लगातार चली आ रही है. आज भी यह मूर्ति श्री सायंकाल रामलीला लैय्या सभा की धरोहर के रूप में सुरक्षित है. खास बात ये है कि दो स्वरूपों से शुरुआत होने पर जिले के 143 मंदिरों में 1500 से ज्यादा भक्त व्रत रखकर हनुमान स्वरूप धारण करते हैं”.

बेहद कठिन है नियम: सुभाष गुलाटी ने बताया कि “40 दिन का व्रत हनुमान स्वरूप दशहरा से ठीक 40 दिन पहले धारण करते हैं. मगर समय के अभाव में कुछ 20 दिन पहले से इसकी शुरुआत करते हैं. इस दौरान ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन, जमीन या लकड़ी के तख्त पर सोना, 24 घंटे में एक बार अन्न ग्रहण करना, नंगे पैर रहना होता है. साथ ही हनुमान स्वरूप धारण करने वाले भक्त को मंदिर में ही रहना पड़ता है”.

अष्टमी से शुरू हो जाती है यात्रा: श्री हनुमान स्वरूप धारण करने वाले भक्त अष्टमी से नगर परिक्रमा शुरू करते हैं. यह परिक्रमा दशहरे के अगले दिन भरत मिलाप तक जारी रहती है. इस दौरान हनुमान स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ भक्तों के घर जाते हैं. भक्त अपनी पिछली मन्नत पूरी होने पर उन्हें घर पर आमंत्रित करते हैं. इन चार दिनों में हनुमान स्वरूप पूरी तरह से अन्न का त्याग कर देते हैं.