देश की मोदी सरकार ने जी.एस.टी दरों में कमी करके जहां देश के विभिन्न वर्गों को राहत देते हुए विपक्ष को मुद्दाविहीन कर दिया है तो वहीं महंगाई को कम करने की दशा में एक बड़ी पहल की है । अहम बात ये है कि भारत पर टैरिफ लगाने को लेकर पिछले कुछ दिनों से जितना अमेरिका मुखर था, उतनी ही मुखरता से भारत के अंदर विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश में लगे थे। विपक्षी नेताओं ने अमेरिकी टैरिफ के गुब्बारे में महंगाई और बेरोज़गारी की नकारात्मक हवा भर इसे और बड़ा बनाने की कोशिश की, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने नए जी.एस.टी रिफार्म्स से न केवल अमेरिकी टैरिफ के गुब्बारे को फोड़ा, बल्कि विपक्ष द्वारा बनाए जा रहे मंहगाई और बेरोज़गारी बढ़ने के नैरेटिव को भी धराशाई कर दिया। सच तो यह है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश ने आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार देखा है। जी.एस.टी और अब नेक्स्ट जेन जी.एस.टी सुधारों ने आम उपभोक्ताओं को राहत, व्यापारियों को सरलता और देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दी है। यह सुधार व्यवस्था में सरलीकरण लाएगा जो व्यापार करने के माहौल को बेहतर और अधिक प्रभावी बनाएगा।
हालांकि विपक्ष (खासकर कांग्रेस) मोदी सरकार के इस एतिहासिक नए जीएसटी रिफार्म्स को पचा नहीं पा रहा है और बिहार चुनाव को इससे जोड़कर दिखाना चाह रहा है। इसी चाह में कांग्रेस बीड़ी और बिहार की तुलना भी कर चुकी है। ये बात और है कि जब कांग्रेस का यह दांव उलटा पड़ गया तो केरल कांग्रेस ने ट्वीट कर इस पर माफ़ी भी मांगी है। खैर ये कांग्रेस और विपक्षी दलों की मानसिकता बन गई है। विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में इतने अंधे हो चुके हैं कि अब उन्हें पता ही नहीं चलता कि मोदी सरकार का विरोध करते-करते कब देश का विरोध करने लग जाते हैं। ट्रंप के सुर में सुर मिलाते हुए राहुल गांधी का भारत को डेड अर्थव्यवस्था कहना इसका ताजा उदाहरण है।
अमेरिकी टैरिफ लागू होने के दौरान भी भारत की बढ़ती जी.डी.पी भारत को डेड इकोनोमी कहने वालों के मुंह पर तमाचा है। इसी तरह नए जीएसटी रिफार्म्स जहां आम जनता को राहत और बचत देते दिख रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियों को इसके बाद वोटों में चपत लगती दिख रही है। जीएसटी में नेक्स्ट जेन रिफॉर्म्स का तोहफा 22 सितंबर, नवरात्रि के पहले दिन से मिलने जा रहा है। जीएसटी में यह सुधार माँग बढ़ाएगा, निवेश लाएगा और करोड़ों युवाओं को रोज़गार देगा। मोदी सरकार के इस दावे पर देश विश्वास करता दिख रहा है कि उद्योग जगत जीएसटी दरों में कमी का पूरा लाभ उपभोक्ताओं तक पहुँचाएंगा।
हरियाणा भारतीय जनता पार्टी के मीडिया प्रभारी अरविंद सैनी ने कहा कि कांग्रेस सरकारों ने केवल वादे किए, लेकिन सुधार कभी लागू नहीं कर पाई। प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों को भरोसा दिया, घाटा होने पर क्षतिपूर्ति की गारंटी दी और एक राष्ट्र-एक कर का सपना साकार किया। दैनिक रोज़मर्रा की कई वस्तुओं, जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा, मेडिकल उपकरणों और जीवनरक्षक दवाओं पर जीएसटी शून्य कर दिया गया है। कपड़े, जूते, दवाइयाँ, फ्रिज-टीवी, कृषि उपकरण, घर निर्माण की सामग्री तक सब सस्ते हुए हैं। इस बदलाव से हमारे देश के युवा-युवतियों, महिलाओं, किसानों, कृषि उत्पादन, एमएसएमई क्षेत्र, उपभोक्ताओं, दुकानदारों और उद्योग चलाने वाले उद्यमियों सहित हर वर्ग को बड़ा लाभ मिलेगा।
2014 से पहले कांग्रेस की सरकारों के दौरान उपभोक्ताओं और व्यापारियों पर जितना बोझ था, चाहे वह टैक्स का हो या कागजी झंझटों का, वह 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद लगातार कम होता गया। आज भारत की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत स्थिति में है कि बैंक के ब्याज दरों में कमी आई है, महंगाई दर में भारी गिरावट आई है और विकास दर ऐतिहासिक ऊँचाइयों पर पहुँची है। जब पूरी दुनिया आर्थिक सुस्ती से जूझ रही है, तब भारत 7.8% की दर से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी। जीएसटी सुधारों का यह निर्णय देश को 2047 तक विकसित भारत के संकल्प की ओर ले जाता दिख रहा है।
वैसे इन परिस्थितियों में नए जीएसटी रिफार्म्स कर पाना आसान नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने घाटा होने पर राज्यों को क्षतिपूर्ति की गारंटी दी और एक राष्ट्र-एक कर का सपना साकार किया। रोज़मर्रा की वस्तुएँ, कपड़े, जूते, दवाइयाँ, बीमा, टू-व्हीलर से लेकर फ्रिज-टीवी तक सब सस्ते हुए हैं। मेडिकल उपकरणों और जीवनरक्षक दवाओं पर टैक्स शून्य कर दिया गया है। यह सुधार माँग बढ़ाएगा, निवेश लाएगा और करोड़ों युवाओं को रोज़गार देगा। आजादी के बाद पहली बार देश के टैक्स ढांचे में इतना बड़ा परिवर्तन किया गया है। व्यवस्था में सरलीकरण आएगा, जो व्यापार करने के माहौल को बेहतर और अधिक प्रभावी बनाएगा। इस बदलाव से देश के युवा-युवतियों, महिलाओं, किसानों, कृषि उत्पादन, एमएसएमई क्षेत्र, उपभोक्ताओं, दुकानदारों और उद्योग चलाने वाले उद्यमियों और हर वर्ग को बड़ा लाभ मिलेगा।
15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री ने देश से वादा किया था कि अब भारत रुकेगा नहीं, झुकेगा नहीं, बल्कि आगे बढ़कर बड़े कदम उठाएगा। जो क्षमता देश में अब दिखाई दे रही है, वो क्षमता 2014 से पहले नहीं थी। उस समय देश की अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हालत में थी। कांग्रेस के 10 वर्षों के शासन में भ्रष्टाचार तो खूब हुआ, लेकिन कोई ठोस और परिवर्तनकारी सुधार नहीं किए गए। श्रद्धेय अटल जी ने एक राष्ट्र-एक कर की परिकल्पना की थी। उस समय देश में लगभग 30-35 तरह के टैक्स, ड्यूटी और लेवीस लागू थे। अटल जी चाहते थे कि इन सबको समेटकर एक टैक्स बने, लेकिन 2004 में वे दोबारा चुनकर नहीं आए और इसके बाद यूपीए सरकार सिर्फ वादे करती रही। कांग्रेस के वित्त मंत्री बार-बार घोषणा करते रहे कि वे एक टैक्स लाएंगे, लेकिन राज्य सरकारें उन पर विश्वास नहीं करती थीं। तब राज्यों को भरोसा नहीं था कि अगर इस सुधार से उनका राजस्व घटा या घाटा हुआ, तो केंद्र उनकी मदद करेगा। लेकिन मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में राज्यों को विश्वास दिलाया कि जीएसटी लागू होने के बाद यदि किसी राज्य के राजस्व में कमी आती है या उसकी वृद्धि दर 14% से कम रहती है, तो केंद्र सरकार उसे कंपनसेशन के माध्यम से पूरा करेगी, वह भी पूरे 5 साल तक। यही विश्वास और यह गारंटी इस ऐतिहासिक सुधार को सफल बनाने में निर्णायक साबित हुई।
पहले व्यापार और उद्योग जगत को कितनी जटिलताओं से गुजरना पड़ता था, अलग-अलग अफसरों के यहाँ जाना, तरह-तरह के फॉर्म भरना और टैक्स की उलझनों में फँसना आम बात थी। कहीं एंट्री टैक्स, कहीं सेल्स टैक्स, कहीं सेंट्रल सेल्स टैक्स तो कहीं एक्साइज ड्यूटी और अलग-अलग सेस। हर राज्य अपने-अपने टैक्स और सेस लगाता था, ऊपर से केंद्र सरकार के टैक्स, ड्यूटी और सेस अलग से लागू होते थे। इन सबके चलते व्यापारियों और उद्योगपतियों पर तो बोझ बढ़ता ही था, उपभोक्ता भी अनजाने में टैक्सों के इस बोझ का हिस्सा बनते थे। समस्या यह थी कि टैक्स मल्टीपल लेवल्स पर लगता था, यानी टैक्स पर भी टैक्स। उदाहरण के लिए, पहले एक्साइज ड्यूटी लगती थी, फिर उसके ऊपर सेल्स टैक्स। इसके बाद ऑक्ट्रॉय लगती थी, जो सेल्स टैक्स और एक्साइज दोनों के ऊपर जुड़ती थी। अगर बीच में 4% का सेंट्रल सेल्स टैक्स लागू हुआ, तो उस पर भी ऑक्ट्रॉय और फिर सेल्स टैक्स लग जाता था। ये सारी कठिनाइयाँ व्यापार जगत और उपभोक्ताओं दोनों के लिए बेहद परेशान करने वाली थीं। ये किसी से छुपा नहीं है कि “सी-फॉर्म“ की जटिलता से व्यापारी किस हद तक परेशान रहते थे। इन सभी समस्याओं को समाप्त करके, जीएसटी ने देश के व्यापार और उद्योग जगत को वास्तविक राहत दी।
1 जुलाई 2017 से इसकी शुरुआत हुई और प्रधानमंत्री मोदी जी ने पाँच साल तक राज्य सरकारों को यह भरोसा दिया कि उनकी राजस्व वृद्धि हर साल कम से कम 14% रहेगी। उदाहरण के लिए, यदि 2017 में किसी राज्य का राजस्व 100 रुपए था, तो अगले साल वह 114 रुपए होना तय था। उसके बाद केवल 14 रुपए की बढ़ोतरी नहीं, बल्कि 114 पर 14% यानी लगभग 16 रुपए और जुड़कर 130 रुपए हो जाता। इस तरह हर साल यह वृद्धि सुनिश्चित की गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता और नेतृत्व के कारण ही सभी राज्यों, यहाँ तक कि विपक्ष शासित राज्यों ने भी मिलकर रेट, स्लैब और पूरी प्रक्रिया को तय किया। संविधान संशोधन के माध्यम से इसे लागू किया गया और 2017 से लेकर 2025 तक समय-समय पर जहाँ-जहाँ संभव हुआ, प्रधानमंत्री ने टैक्स दरों को घटाने का काम किया। 2018 में ही 100 से 150 वस्तुओं पर एक साथ टैक्स दरें कम की गई थीं। यह सिलसिला लगातार जारी रहा और उपभोक्ताओं को लगातार राहत मिलती रही, लेकिन विपक्ष ने अनाप-शनाप आरोप लगाए, गलतफहमिययां फैलाने की कोशिश की। जबकि वास्तविकता यह है कि 2014 से पहले कांग्रेस की सरकारों के दौरान उपभोक्ताओं और व्यापारियों पर जितना बोझ था, चाहे वह टैक्स का हो या कागजी झंझटों का वह 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद लगातार कम होता गया। इसका परिणाम यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नई गति और मजबूती मिली। कोविड काल में जब मांग कम हो गई थी, तब भारी भरकम कंपनसेशन सेस का भुगतान करना पड़ा, जो वसूल की गई राशि से भी अधिक था। फिर भी मोदी सरकार ने पूरे पांच साल तक और कोविड काल को जोड़कर भी राज्यों को 14% वृद्धि के साथ पूरा कंपनसेशन दिया। अब वह समय आ रहा है जब कंपनसेशन की जितनी राशि दी गई थी, वह लगभग पूरी तरह समाप्त होने जा रही है।
जिस साफ नीयत से सरकार आगे बढ़ रही है उससे लगता है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के लिए व्यापार और उद्योग जगत को आसान और पारदर्शी कर प्रणाली मिले। उपभोक्ताओं को भी सीधा फायदा पहुँचे, उन्हें सस्ते दाम पर सामान उपलब्ध हो। यही वह उद्देश्य है जिसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार चार दिन पहले, यानी 3 तारीख को, जीएसटी काउंसिल ने ऐतिहासिक निर्णय लिए। यह निर्णय इतना व्यापक है कि देश के 140 करोड़ नागरिकों को लाभ पहुँचाने वाला है। यह आज तक का सबसे बड़ा और परिवर्तनकारी कदम है, जिसे आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाले ऐतिहासिक बदलाव के रूप में याद किया जाएगा। यह सुधार माँग को बढ़ाएगा और बाजार में नई ऊर्जा का संचार करेगा। इसका दायरा कितना व्यापक है, खाने-पीने की चीज़ों से लेकर व्हाइट गुड्स जैसे रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, स्कूटर, मोटरसाइकिल, कारें, कॉस्मेटिक्स, ब्यूटी प्रोडक्ट्स, कपड़े, जूते, घड़ियाँ, चश्मे सुबह से रात तक हमारी दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली लगभग हर चीज इसके दायरे में आती है।
भारत की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत स्थिति में है कि बैंक के ब्याज दरों में कमी आई है, महंगाई का स्तर घटकर 1.55% तक आ गया है और विकास दर ऐतिहासिक ऊँचाइयों पर पहुँची है। पिछले तिमाही में, जब पूरी दुनिया आर्थिक सुस्ती से जूझ रही थी, तब भारत 7.8% की दर से दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना। यह सब भारत की मजबूती और स्थिरता के प्रतीक हैं। कांग्रेस के शासनकाल में जनता पर 30-35% तक एक्साइज, वैट, सेंट्रल सेल्स टैक्स, सेल्स टैक्स, ऑक्ट्रॉय, एंट्री टैक्स और अन्य तरह के करों का बोझ था। उस समय के मुकाबले आज मजबूत आर्थिक नीतियों की वजह से जीएसटी दरों में लगातार कमी करना संभव हुआ है। रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं पर टैक्स घटाए गए हैं, साथ ही पूरी प्रक्रिया को भी सरल और पारदर्शी बनाया गया है। रेट का युक्तिकरण भी किया गया है, पहले कई बार ऐसा होता था कि तैयार माल पर टैक्स कम और कच्चे माल पर ज्यादा होता था। इसे भी ठीक किया गया है। उदाहरण के लिए, मैनमेड टेक्सटाइल्स की पूरी चेन पर टैक्स घटाकर 5% कर दिया गया है। कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों की नकारात्मक सोच के विपरीत एक बड़ा सकारात्मक कदम मोदी सरकार ने उठाया है, जो देश की अर्थव्यवस्था को बल देगा और विकास यात्रा को और आगे बढ़ाएगा। अब दवाइयाँ और मेडिकल उपकरण भी सस्ते होंगे।