जींद। करीब 700 साल पुराने गांव देवरड़ में शनिवार को तालाब के लिए खोदाई में मिले मानव कंकाल और हड्डियों को ग्रामीणों ने सोमवार को दफना दिया। सुबह ही बीडीपीओ प्रतीक जांगड़ा गांव में जांच करने पहुंचे। ग्रामीणों ने उन्हें पूरे मामले की जानकारी दी।
ग्रामीण राममेहर ने बताया कि आजादी से पहले गांव में मुसलमान रहते थे। 100 साल पहले इस तालाब की जगह कब्रिस्तान होता था। तालाब में मिल रहे कंकाल कब्रिस्तान में दफनाए गए मुस्लिमों के हो सकते हैं। शनिवार को खोदाई के दौरान 10-12 मानव कंकाल और पुराने मटके मिले थे।
इनकी लंबाई आठ फीट तक थी। इसके बाद खोदाई का काम रोक दिया गया था। गांव की सरपंच सुनील कुमारी ने बताया कि पहले भी तालाब में खोदाई के दौरान हड्डियों के टुकड़े मिले थे। शनिवार को सात फीट गहरी खोदाई की तो हड्डियां व पुराने मटके मिले।
सोमवार को बीडीपीओ को अवगत कराने के बाद हड्डियां और कंकाल दफना दिए गए हैं। खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी प्रतीक जांगड़ा ने मंगलवार से दोबारा खोदाई कराने का निर्देश दिया है।
यह है गांव का इतिहास
देवरड़ गांव 700 साल पुराना बताया जा रहा है। यहां श्याम जी मंदिर आस्था का केंद्र है। फाल्गुन मास की द्वादशी को लगने वाले मेले में लोगों की भारी भीड़ जुटती है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य ने तपस्या की थी। उन्हीं के नाम से गांव का प्रारंभिक नाम द्रोणागढ़ पड़ा था। बाद में गांव का नाम देवरड़ कर दिया गया। गांव लगभग 700 साल पहले बसाया गया था।
तालाब में खोदाई के दौरान मानव कंकाल मिलने के बाद गांव का दौरा किया। यह मानव कंकाल कब्रिस्तान के कारण हो सकते हैं, क्योंकि सात फीट गहराई में ही मिले हैं। खोदाई का काम दोबारा शुरू करा दिया गया है। प्रतीक जांगड़ा, बीडीपीओ, जुलाना।