कुरुक्षेत्र का श्री देवीकूप (भद्रकाली) मंदिर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। नवरात्र और शनिवार के दिन मां के दर्शन करने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। प्राचीन कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा किए गए यज्ञ में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव बेचैन और व्याकुल होकर उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूम रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 52 टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जिन स्थानों पर उनके शरीर के अंग गिरे, वे सभी शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र के इस स्थान पर माता सती का दाहिना घुटना गिरा था, इसलिए इस मंदिर को देवीकूप के नाम से भी जाना जाता है।
अन्य प्रचलित कथाएं भी हैं। मंदिर के पीठाध्यक्ष सतपाल शर्मा ने बताया कि यहाँ मां का शांत स्वरूप स्थापित है। मां के दर्शन और पूजा के लिए केवल हरियाणा से ही नहीं, बल्कि दिल्ली, हिमाचल, पंजाब और बंगाल आदि से भी श्रद्धालु आते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कहा जाता है कि सरस्वती नदी के किनारे देवीकूप में भगवान कृष्ण और बलराम का मुंडन संस्कार हुआ था। वह देवीकूप यही मंदिर है।
महाभारत के युद्ध से पहले भी भगवान कृष्ण ने पांडवों के साथ मिलकर इस मंदिर में शक्ति की उपासना की थी। युद्ध की विजय के बाद, उन्होंने मंदिर में अपने रथों के घोड़े दान किए थे। तब से यहाँ घोड़े चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएँ पूरी होने पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार चांदी या मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। मंदिर में नवरात्र और शनिवार के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।