रोहतक: इस समय पितृ पक्ष चल रहा है. ये 15 दिनों तक चलने वाला पितृ पक्ष पितरों को समर्पित होता है. इस पक्ष में लोग अपने पितरों के मोक्ष के तर्पण और दान करते हैं. ताकि पितरों को मोक्ष मिल सके. हालांकि कई लोगों की मौत के बाद उनके परिजनों का पता न होने पर उनके शव को यूं ही जला दिया जाता है. उनका अंतिम संस्कार भी नहीं होता. कहा जाता है कि ऐसे लोगों की आत्मा अतृप्त होती है और भटकती रहती है.
सालों से नेक काम कर रहा ये परिवार
हालांकि रोहतक में एक परिवार ऐसा है, जिनकी चार पीढियां लावारिस लाशों को मोक्ष दिलाने का काम कर रही है. साथ ही उनका विधिवत अंतिम संस्कार भी कर रही है. दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए रोहतक का ये परिवार बीते 50 वर्षों से एक अनोखी और पुण्य परंपरा का निर्वहन कर रहा है. इस परिवार की चार पीढ़ियां अब तक करीब 20 हजार लावारिस लाशों की अस्थियां हरिद्वार ले जाकर गंगा में विधिपूर्वक प्रवाहित कर चुकी है.
परदादा ने की थी शुरुआत
मौजूदा समय में इस परिवार के 40 वर्षीय सचिन आर्य इस नेक काम को आगे बढ़ा रहे हैं. सचिन से ईटीवी भारत ने बातचीत की. सचिन ने ईटीवी भारत को बताया कि, “यह परंपरा उनके परदादा ने शुरू की थी, जिसे बाद में दादा, पिता ने आगे बढ़ाया. अब मैं खुद इस परम्परा को आगे बढ़ा रहा हूं. मेरा मानना है कि जिन शवों का कोई परिजन नहीं होता, या जिनके परिजन शवों को लेने नहीं आते, उनके मोक्ष के लिए यह सेवा जरूरी है.”
साल में दो बार हरिद्वार ले जाते हैं अस्थियां
सचिन आर्य ने आगे बताया कि, “हम साल में दो बार रोहतक स्थित प्राचीन शिव मंदिर शमशान घाट से ऐसे लावारिश लाशों की अस्थियों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें हरिद्वार ले जाकर पूरे विधि-विधान से गंगा में प्रवाहित करते हैं. शमशान घाट में हर महीने सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार होता है, जिनमें से कई शव या तो लावारिस होते हैं या आश्रमों से आए होते हैं. इस सभी शवों को अंतिम संस्कार के बाद हम हरिद्वार ले जाकर उनकी अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर मोक्ष दिलाते हैं.”
“सचिन जी का कार्य प्रेरणादायक”
वहीं, स्थानीय निवासी साहिल ने सचिन और उनके परिवार के नेक काम को लेकर कहा कि, “सचिन जी का कार्य प्रेरणादायक है. हम भी इस पुण्य कार्य में भागीदार बनना चाहते हैं. यह सिर्फ सेवा नहीं, एक महान संस्कार है.” एक अन्य स्थानीय निवासी साहिल ने बताया कि, “सचिन के परिजन यह काम करते आए हैं. इससे हमें भी प्रेरणा मिलती है. लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर उनकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करवाना पुण्य का काम है. सचिन को देखकर मैं भी काफी उत्साहित हूं. मैं भी सचिन के साथ इस नेक काम में भागीदार बनना चाहता हूं.”
बता दें कि रोहतक का प्राचीन शिव मंदिर शमशान घाट शहर का प्रमुख दाह-संस्कार स्थल है. यहां हर महीने सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार होता है. इनमें से कई शव लावारिस होते हैं या फिर अनाथ आश्रमों से आए होते हैं. ऐसे शवों की अस्थियां यदि गंगा में प्रवाहित न की जाएं, तो मान्यता है कि ऐसे मृतकों के आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती. इन आत्माओं को मोक्ष दिलाने का काम ये परिवार सालों से कर रहा है. इस परिवार के नेक काम की हर ओर सराहना हो रही है.