कैथल: कैथल का एतिहासिक गांव फरल (प्राचीन नाम फल्की वन) एक बार फिर पुरातात्विक महत्व को लेकर चर्चा में है। हाल ही में यहां 8वीं से 11वीं शताब्दी के बीच के गुर्जर प्रतिहार काल की एक टूटी हुई मूर्ति मिली है। यह प्रतिमा वर्षों से गांव के प्राचीन शिव मंदिर के पास पीपल के पेड़ के नीचे रखी थी जिसे स्थानीय लोग अब तक शिवलिंग मानकर पूजते आ रहे थे।
इस मूर्ति की पहचान पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान, ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) के शोध छात्र जसबीर सिंह, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के छात्र राजदीप सिंह और ग्रामीणों रवि सिरोही और नीतीश भारद्वाज ने की। इस खोज में गांव के स्थानीय लोग भी सक्रिय रूप से शामिल रहे।शोध छात्र जसबीर सिंह के अनुसार यह प्रतिमा चूना पत्थर की बनी हुई है और उसकी बनावट से ऐसा प्रतीत होता है कि यह भगवान विष्णु की मूर्ति हो सकती है। हालांकि कुछ भाग टूटे होने के कारण इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है।
मूर्ति की साफ-सफाई श्री फल्गु ऋषि कमेटी के अध्यक्ष भीम सेन शर्मा की निगरानी में की गई। जसबीर सिंह ने बताया कि यह प्रतिमा लंबे समय से वहीं रखी थी, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि यह एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहर है न कि शिवलिंग, जैसा कि पहले माना जा रहा था। इससे पहले भी गांव फरल से कुषाण काल के तांबे के सिक्के, मिट्टी के बर्तन, गुप्त और राजपूत काल की अन्य वस्तुएं प्राप्त हो चुकी हैं। इन खोजों में स्थानीय छात्र विनोद कुमार की भी अहम भूमिका रही है।
गांव के मध्य स्थित यह टीला, जिसकी ऊंचाई लगभग 15 से 20 मीटर है, लंबे समय से विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं का केंद्र रहा है। इतिहासकारों का मत है कि यह क्षेत्र कभी गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के अधीन रहा होगा।