झारखंड में एक बार फिर पेसा एक्ट अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों का विस्तार अधिनियम, 1996 को लेकर सियासत शुरू हो गई है. बीजेपी ने सीएम हेमंत सोरेन पर इस एक्ट को लेकर निशाना साधा है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन सरकार पर आदिवासी समुदाय के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया है.
क्या है PESA एक्ट?
झारखंड में एक बार फिर पेसा एक्ट को लेकर सियासी पारा हाई हो गया है. पेसा एक्ट The Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996 यानी अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों का विस्तार अधिनियम, 1996 है. यह कानून भारत के उन आदिवासी इलाकों के लिए बनाया गया है जिन्हें अनुसूचित क्षेत्र कहा जाता है. इसका मकसद है कि आदिवासी समुदाय को अपने क्षेत्र में ज्यादा अधिकार और खुद का शासन चलाने की ताकत मिले.
इस कानून को इसीलिए बनाया गया था ताकि पंचायती राज व्यवस्था के नियम-कानूनों को अनुसूचित क्षेत्रों में भी लागू किया जा सके. ये अनुसूचित क्षेत्र वो इलाके हैं जहां ज्यादातर आदिवासी समुदाय रहते हैं. दरअसल, पहले, इन इलाकों को 73वें संविधान संशोधन से बाहर रखा गया था, जिस संशोधन से पूरे देश में पंचायती राज संस्थाएं बनाई गई थीं. इसी के बाद पेसा कानून बनाया गया. जिसका मकसद आदिवासी समुदायों को स्वशासन (अपना राज खुद चलाने) का अधिकार देना है. यह उन्हें ग्राम सभाओं के जरिए सशक्त करता है, ताकि वो अपने संसाधनों और मामलों का खुद प्रबंधन कर सकें.
पेसा कानून का मकसद
- आदिवासियों को अधिकार देना. उन्हें अपने संसाधनों (जंगल, ज़मीन, पानी) का मैनेजमेंट खुद करने का अधिकार देना.
- ग्राम सभा गांव की सभा (ग्राम सभा) को योजना बनाने, संसाधनों का इस्तेमाल करने और स्थानीय विवाद सुलझाने की
- जिम्मेदारी दी गई है.
- परंपरागत रीति-रिवाजों का सम्मान
- विकास योजनाओं में भागीदारी
किन राज्यों में पेसा लागू?
देश में कुल 10 राज्य ऐसे हैं, जहां पेसा कानून है. इनमें आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना शामिल हैं. लेकिन, ओडिशा और झारखंड में यह कानून आज तक लागू नहीं हो सका, जबकि बाकी 8 राज्यों ने लागू कर दिया है.
बीजेपी ने साधा हेमंत सरकार पर निशाना
अब इसी पेसा एक्ट को लेकर बीजेपी हेमंत सोरेन सरकार पर हमला बोल रही है. आदिवासी महा दरबार में बोलते हुए चंपाई सोरेन ने कहा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने PESA एक्ट की समीक्षा की थी और ग्राम सभा को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कुछ विशेष प्रावधान भी शामिल किए थे, लेकिन वर्तमान सरकार इसे लागू ही नहीं करना चाहती.
उन्होंने बताया कि 24 अगस्त, अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर, उन्होंने रांची के नगड़ी में खेती शुरू करने की घोषणा की थी और सरकार को चुनौती दी थी कि उन्हें रोके. राज्य के कोल्हान और संताल परगना क्षेत्रों में सभी प्रयास किए गए कि मेरे समर्थकों को रोका जाए, लेकिन हम सफल रहे और उस ज़मीन पर हल चला दिया, जहां सरकार कृषि भूमि पर RIMS-II प्रोजेक्ट बनाना चाहती थी.
चंपई सोरेन ने आदिवासी समाज से की अपील
चंपई सोरेन ने आदिवासी समाज से अपील की कि वो एकजुट होकर अपनी परंपरा, पहचान और संस्कृति की रक्षा के लिए आंदोलन करें, जैसे हमारे पूर्वज बाबा तिलका मझी, सिधो-कान्हो, पोटो हो, चंद भैरव और बिरसा मुंडा ने किया था. उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार आदिवासी स्वशासन व्यवस्था को मजबूत नहीं करना चाहती, बल्कि उन्हें अबुआ-अबुआ यानी सिर्फ अपने तक सीमित रखना चाहती है ताकि कोई सवाल न उठा सके.
दानपत्र को लेकर किया हमला
चंपई सोरेन ने आगे कहा, हम आदिवासी इस भूमि के असली मालिक हैं, लेकिन कुछ ताकतें हमें सरकारी अनुदान और राशन पर निर्भर बनाना चाहती हैं. अगर हमारी जमीन सुरक्षित हो और सिंचाई की व्यवस्था मजबूत हो तो हम दस परिवारों का पेट भर सकते हैं.
उन्होंने दानपत्र (Daanpatra) का जिक्र करते हुए कहा कि कैसे कागज़ के एक टुकड़े का इस्तेमाल कर छोटानागपुर और संताल परगना टेनेंसी एक्ट जैसे कानूनों को दरकिनार कर आदिवासी भूमि को हड़पा जा रहा है. साथ ही चंपाई सोरेन ने चेतावनी दी कि 22 दिसंबर को भोगनाडीह, दुमका में एक बड़ी आदिवासी बैठक (बैसी) बुलाई गई है, जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी ताकि दानपत्र के माध्यम से लूटी गई आदिवासी जमीन वापस ली जा सके.